Monday, August 27, 2012

प्यार पर कुछ बेतरतीब बातें


प्यार तुम्हारा 

एक

एक बच्चे की हंसी
जिसके हाथ में उसके पसंद का खिलौना

पिता के चेहरे का गर्व
बेटे के जीत जाने की एवज में

कवि की पूरी हो गई कविता
उसके माथे का सकून

खूब तनहाई में 
बज उठी फोन की घंटी

भीषण सूखे में उमड़ आए जैसे
काले-काले बादल

प्यार तुम्हारा कुछ-कुछ वैसा...।

दो

नदी के पार से आती 
बांसुरी की एक पागल तान

गाय के थन से
झर-झर बहता सफेद और गरम गोरस

जमीन के भीतर से 
पहली बार आंख  खोलती मकई की डीभी

मेरे गांव के सबसे गरीब किसान
के कर्ज माफ की सरकारी चिट्ठी

कूंएं का मीठा पानी
और बरसाती शाम में घर के चूल्हे से उठता धुंआ

जैसा तुम्हारा प्यार...।

तीन

दुनिया की सबसे सुंदर लड़की के साथ
दुनिया के सबसे बड़े रेस्तरां में
एक ही कप और आधी-आधी कॉफी

दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ पर
सबसे चमकीली और सफेद वर्फ

सबसे सुंदर घाटी में खिला
सबसे सुंदर एक अकेला फूल

सबसे  कर्मठ आदमी के माथे पर
चमकती पसीने की एक  अनमोल बूंद

असंभव सपने -सा
तुम्हारा प्यार...।


चार

खूब बेरोजगारी के दिनों में
नौकरी की चिट्ठी

घर जल जाने के बाद भी

बची रह गई बिअहुती साड़ी
बहुत पुराना लाल सिन्होरा

नीम के पेड़ में

लगे तीखे-मीठे निमकौड़ी 
खूब लाल एक दसबजिया फूल
चार बजे बजी गुड़ की डली-सी मीठी
स्कूल की छुट्टी की घंटी

घर लौटते वक्त

सिर पर छाई मेघ की छतरी
राह में उगी नरम घास
खाली पैरों को गुदगुदाती

राह में मिली पड़ी

एक चवन्नी
और ढेर सारी गोलिया मिठाई

बिमार मां का उतरा बुखार

बहन के हाथ में चढ़ी मेंहदी
गांव में आई अनाज की गाड़ी
शाम को ढोलक की थाप पर
पूरवी - सोहर-मेहीनी
धीमे-धीमे गांव की अलसाई रात में भिनती

प्यार तुम्हारा वैसा ही...।


पांच

 सबसे अच्छी किताब की
सबसे अच्छी कविता

एक पहला प्रेम-पत्र
नाखून से लिखा हुआ

एक याद रह गए
गजल की एक बंद

घर में दरवाजा
जेब में जरूरी कुछ चिल्लड़

और... जैसा प्यार तुम्हारा

छः

दफ्तर जाते हुए रोज
मिलती एक लड़की के कान में
झूलती हुई सबसे सुंदर कनबाली

सुबह-सुबह समय पर रेलगाड़ी के आने की
सूचना देती एक लड़की की
मधुर आवाज

पांच दिन अथक काम करने के बाद
दो दिन की मिली छुट्टी

किसी नई नवेली दुल्हन के हाथ में
शंखा-पोला और खूब चमकता लाल सिंदूर
एक बिंदी 
और मंगलसूत्र

गांव से खुशी-खुशी लौटी बारात
पहली बार ससुराल जाती
दुल्हन की डोली
सकून की रोआ-रोंहट

छत पर उगा लौकी का सफेद फूल
गेंदे की हरी पत्तियों में
छुपा एक पीला फूल

खूब जोर की आंधी के बाद भी
बचा रह गया
अमरूद का  एक छोटा पौधा

और...
जैसा प्यार तुम्हारा

Saturday, August 25, 2012

‘उत्तर प्रेम' श्रृंखला की कविताएं


उत्तर प्रेम -1


भूखे नट की तरह एक पतली रस्सी पर चलता हूं
शिकारी की आंख से हरिण की तरह खुद को बचाता
ढेर सारे झूठ सच की तरह बोलता  जैसे ढेर सारे सच झूठ की तरह
आसमान की ओर मुंह करके
पता नहीं किसकी सलामती की दुआ करता हूं

खुद को खुद ही संबोधित करता जैसे कोई पागल फकीर (कि लालन फकीर)
नदी के गंदे पानी को अमृत की तरह पीता
किसी छूट गए लोक में  अलोपित हो गए पितरों के चेहरे याद कर 
रोता हूं पोंका फाड़

नल खोलकर भूल जाता बंद करना  बंद नल को खोलना जैसे भूलता
धूप से जलकर पूरे शरीर में पड़े फफोले
चूल्लू भर पानी में डूब-डूब मरा

सब्जियां खरीदता जबकि सब्जियों के स्वाद नीम में बदल जाते
आटा गुंथता कि सारा आटा काले कींचड़ में बदल जाता
वह लोक गीत जिसे बचपन में गाया करता था मेरे गांव का सबसे बूढ़ा आदमी
उसके हर्फ को किसी अबोध लड़की की तरह निलाम कर दिया गया
(कहते हैं कि गान्ही महात्मा जब आते थे हमारे इलाके में तो उनके भाषण के पहले
वही गीत गाता था मेरे गांव का वह बूढ़ा आदमी)
बचपन के सारे दोस्त बन गए बंधुआ मजदूर
चले गए सूरत, दिल्ली, नोएडा या अरब देस
रिश्तेदार सारे जबरन ठूंस दिए गए किसी यातना शिविर में 
सारे हथियार जिनसे लड़ना चाहता  शब्दों में बदल जाते
भर नींद सोने नहीं देते मुझे
सिर्फ मैं ही जानता हूं  कि असल में वे शब्द नहीं
तलवार, लाठी, माऊजर और मशीन गन हैं
मेरे उपर ही तने  मुझे ही डराते

बावजूद सबके
किसी के लिए अब भी मेरे पास हैं असंख्य कविताएं लिखने को
जैसे असंख्य रोटियां हैं बनाने को किसी के लिए

क्या करूं मैं
आजकल शब्दों के चेहरे  इस देश के चेहरे की तरह दिखने लगे हैं
हैं वहां असंख्य दाग
जो मिटने की बजाय होते जाते है और अधिक गहरे
एक पूरी जमात के साथ मैं भी खड़ा हूं कटघरे में
योर ऑनर मैं निर्दोष हूं की रट लगाता ...योर ऑनर..
क्षमा कीजिए मुझे मैं शब्द हूं और इस तरह आपका और इस देश का ब्रह्म हूं मैं

मैं क्या करूं
जैसे रहता आया हूं सदियों से इसी अभागे देश में
वैसे ही शब्दों से करता हूं प्यार...
और देखिए कि हजार-हजार मरण के बाद
अब भी जिंदा हूं मैं
........
आपको मेरी बेशर्मी ( बेवशी) पर हंसी आती है..??




Friday, August 24, 2012

एक पागल आदमी की चिट्ठी

एक

एक नाम लिखा होता है
एक अस्पष्ट -सा चित्र बना होता
जिसमें कई चेहरे होते हैं
कोई भी चेहरा साबुत नहीं

कुछ जरूरी शब्द धुंधलाए

पिघल गए होते हैं खारे पानी से

वह जीवन भर रहती है

एक गंदे पोटले में

एक पागल आदमी की चिट्ठी 

कभी पोस्ट नहीं होती...।

दो 

पागल आदमी की चिट्ठी में
प्रेम नहीं लिखा होता
प्रेम की जगह एक लिपि अंकित होती है
उसे आप ब्राह्मी, खरोष्ठी या कैथी से तुलना नहीं कर सकते
वह एक अन्य ही लिपि होती है
समझने की शक्ति जिसे दुनिया के सारे भाषाविद खो चुके हैं

पागल आदमी की लिपि को


समझता है एक दूसरा पागल आदमी
और बहुत ऊंचे स्वर में रविन्द्रनाथ का लिखा
कोई एक बाऊल गीत गाता है
गाते हुए उसके गले की नीली नसें
फूल कर मोटी हो जाती हैं

वह हर रात सोने के पहले
कागज के कई टुकड़े निकालता है
तसल्ली करता है कि वे सभी साबुत और जिंदा हैं

बाद इसके वह झर-झर रोता है
पोंछता है खुद अपने आंसू
कई पुराने कागज के टुकड़े उसके चारों ओर खड़े हो जाते हैं
इबाबत की मुद्रा में

पागल आदमी के रोने की आवाज
दुनिया का एक भी आदमी नहीं सुनता..।

तीन 





हरनाथपुर वाया कोलकाता


हरनाथपुर वाया कोलकाता -1
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घर के पुराने कोने में नाखून से खुरचकर लिखा
तुम्हारे नाम पर मिट्टी के लेप चढ़ गए
खेत में जो कनबाली छुपाई थी तुम्हारी
वहीं से एक रास्ता गुजरता शहर की ओर जाता है

नहीं रहे बेर के पेड़
जामुन का पेड़ ढह गया पिछली आंधी में
अब नहीं लड़ता कोई अपने-अपने आम के पेड़ के लिए

दो साल पहले  बिके थे छबीस आम के गांछ
महुए के दो पेड़
अब वहां बन गए हैं घर
अब उस माटी तक पहुंचना भी नामुंकिन

छब्बीस साल पहले  जब आया था कोलकाता
मुंह में भोजपुरी और देह में खेत की माटी के साथ
तुम्हारे साथ रोई थीं वे गलियां
जहां हम कांच की गोलियां खेला करते

बार-बार लौटा मैं वहीं शब्दों और कविताओं से दूर
जहां फिर से कुछ भी नहीं मिलना था

मैं बहुत बार गया हरनाथ पुर
लेकिन दूसरी बार कभी नहीं जा सका  तुम्हारे ससुराल कुछ कोस की ही दूरी पर

तुम्हे खोजता रहा आज तक
उसी मिट्टी में जिसके निशान अब बाकी नहीं....।









                              (2)

डूबती सांसे कहीं कोई नहीं
इस शहर के एक मकान की चौथी मंजिल के कमरे में जिसकी किस्त खत्म होने का नाम नहीं लेती
पिता की याद आती है तो उनके बड़े हाथ याद आते हैं जो डराते थे और रास्ता दिखाते थे
मां बीमार है गांव से फोन आया है यह वही मां है जिसे 
पहली बार मां कहा था और रोटी की तलाश में उससे दूर इस नगर में आ बसा था जिसकी जबान अबतक मेरी समझ में नहीं आती 

पिता को पिता कहने में अब साहस की जरूरत होती है
मां का चेहरा अब मां की तरह नहीं लगता
मैं अंधेरे में बैठ कर रोता हूं रात भर मुझे चुप कराने कोई नहीं आता मैं बहुत गुस्से में हूं मैं बहुत नाराज हूं इतिहास की अंधी सुरंगों से चलकर आजी नहीं आती मनाने जो सिर्फ मुझे मनाने के लिए आती थी और वही एक थी जो मुझे फिर-फिर दुनिया में लौटा सकती थी

जिस बहन की गोद में खेलकर बड़ा हुआ उसके सारे बाल सफेद हो चुके हैं वह अक्सर खून की कमी से जुझती रहती है उसकी चार बेटियां है और उसका पति मुंबई चला गया है वह साल दो साल में एक बार लौटता है उसके पास मेरी उस बहन के लिए दुख के अंतहीन क्षणों के सिवा और कुछ नहीं है

मेरे सारे खेत परती पड़े हैं जिसे बचपन में बाबा के साथ पटाता था जिसमें गेहूं की बालियां लगती थीं चने के साग होते थे तिलहन के फूल खिलते थे खेत वे मेरे देखते हैं हसरत भरी निगाह से मुझे चिन्ह जाते हैं मेरे माथे पर बल है मुझे चक्कर आ रहे हैं मैं मनुष्य से एक चलती-फिरती लाश में तब्दील हो गया हूं

तीन फेंड़वा के तीनों पेड़ गिर गए तेलहिया, घिवहिया और हथिया आम अब कब मिलेंगे खाने को किसी से कहूं तो कैसे कहूं कि मैं चाहता तो वे तीनों पेड़ बच सकते थे और एक दिन अपने बच्चों को दिखाकर कह सकता था कि देखो इस पेड़ के नीचे खाट पर मैं सोता था खूब तेज लू में भी और मिट्टी की सुराही का पानी पीते हुए इनकी रखवाली करता था।

बोझ से दबी सड़कों पर चलता हूं और उम्र से ज्यादा बूढ़ा दिखते हुए चिल्ला रहा हूं अपने पुरखों के नाम अपने गांव की नदी और अपने खेतों के नाम और अपने दोस्तों के नाम जो रोजी की तलाश में बहुत पहले छोड़ गए अपना जवार खेत बधार

मेरी कविताओं में लिखे कई शब्द रात भर मुझे सोने नहीं देते एक नदी हर रोज विलखती है मेरी नींद के अंधेरे में बहती हुई कहीं मैं रोज सुबह दौड़ लगाता हूं ताड़ भर अपने गांव की नदी तक पहुंचने को और खुद को फाइलों के बीच पाता हूं कलम घिसता आखिरी लोकल पकड़ने के लिए बेतहासा भागता बस की छड़ पकड़कर यात्राएं करता

हुगली नदी में रोज एक आदमी छलांग लगाता है जेटी से और बचकर निकल आता है और यह क्रम सदियों से चला आ रहा है 
तब से जब जॉब चारनाक नहीं हुए थे

कोलकाता एक जादू है 

जादू एक भंवर है भंवर में फंसी है मरी सांसे और मेरा अब तक का देखा हुआ समय मेरी ढेर सारी अधूरी कविताएं, अधूरी प्रार्थनाएं अधूरे वादे अधूरी हंसी अधूरे गीत और अधूरे प्रेमपत्र ....

हरनाथपुर वाया कोलकाता